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मैं ही मालिक हूं.....✍

                                  

मैं एक कालेज में प्रोफेसर था।

नयानया वहां पहुंचा। कालेज बहुत दूर था गांव से। और, सभी प्रोफेसर अपना खाना साथ लेकर ही आते थे और दोपहर को एक टेबल पर इकट्ठे होते थे। 

संयोग की ही बात थी कि मैं जिनके पास बैठा था, उन्होंने अपना टिफिन खोला, झांककर देखा और कहा : फिर वही आलू की सब्जी और रोटी! मुझे लगा कि उन्हें शायद आलू की सब्जी और रोटी पसंद नहीं है। लेकिन, मैं नया था तो मैं कुछ बोला नहीं। 

दूसरे दिन फिर वही हुआ। उन्होंने फिर डब्बा खोला और फिर कहा कि फिर वही आलू की सब्जी और रोटी! तो मैंने उनसे कहा कि अगर आलू की सब्जी और रोटी पसंद नहीं तो अपनी पली को कहें कि कुछ और बनाये। उन्होंने कहा : पत्नी! पत्नी कहां है। मैं खुद ही बनाता हूं।’ 

यही तुम्हारा जीवन है।

कोई है नहीं। हंसो तो तुम हंस रहे हो, रोओ तो तुम रो रहे हो; जिम्मेवार कोई भी नहीं। तुमने ही चुना है। तुम ही मालिक हो।

इस बोध से भरने का नाम ही कि

 मैं ही मालिक हूं मैं ही सृष्टा हूं,,

जो भी मैं कर रहा हूं उसके लिए मै ही जिम्मेवार हूं, —जीवन में क्रांति हो जाती है। 

जब तक तुम दूसरे को जिम्मेवार समझोगे, तब तक क्रांति असंभव है; क्योंकि तब तक तुम निर्भर रहोगे। तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हें दुखी कर रहे हैं, तो फिर तुम कैसे सुखी हो सकोगे? असंभव है

क्योंकि दूसरों को बदलना तुम्हारे हाथ में नहीं। तुम्हारे हाथ में तो केवल स्वयं को बदलना है। 

ओशो मेरे ओशो...शिव-सूत्र
शिव-सूत्र


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