हंसते और नाचते गाते जो मिलता हो" उसे रोते रोते क्यों
पाना!!
अपने भीतर ही मिल गया!
नाचते-नाचते जो मिलता हो,
उसे रोते-रोते क्यों पाना?
नाचते-नाचते जो मिलता हो,
उसे उदास और गंभीर होकर क्यों पाना?
हंसते-हंसते जो मिलता हो,
उसके लिए लोग नाहक ही शास्त्रों के जाप पर जाप,
पाठ दर पाठ किए जा रहे हैं,
जैसे परमात्मा कोई दुष्ट है
और तुम्हें सताने को आतुर है।
लोग उपवास कर रहे हैं,
भूखे मर रहे हैं और सोच रहे हैं कि इस तरह परमात्मा प्रसन्न
होगा।
तुम क्या सोचते हो कि परमात्मा कोई दुखवादी है?
कोई सैडिस्ट है?
कि तुम अपने को सताओ तो वह प्रसन्न हो?
नाचो! जी भर कर नाचो!
हंसो! गाओ!
इस जगत को एक नाचते हुए, हंसते हुए, गाते हुए,
ध्यान" में डूबे हुए
धर्म की जरूरत है।
वही इस जगत को बचा सकता है…
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